सोमवार, 6 जनवरी 2014

आदमखोर भालू को जब पुलिस ने भून दिया गोलियों से .....

भालू लैंड के नाम से विख्यात छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के मरवाही वन क्षेत्र में अलग अलग स्थानों पर चौबीस घंटे के भीतर दो ग्रामीणों को मार कर उनका मांस भक्षण करने वाले आदमखोर भालू को पेंड्रा रोड के प्रभारी एसडीएम रणवीर शर्मा के आदेश से बुधवार, एक जनवरी को गोलियों से छलनी कर दिया गया। पुलिस ने ग्यारह राउंड फायरिंग कर भालू को मार गिराया। इस एनकाउंटर के बाद यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि क्या यह कार्रवाई पुलिस के अधिकार क्षेत्र में है? इस एनकाउंटर के मामले में वन विभाग के सहयोग को दरकिनार कर स्वतंत्र रूप से कार्रवाई क्यों की गई? ट्रेंक्यूलाइजर गन से इस आदमखोर भालू को बेहोश करने की पहल क्यों नहीं की गई? यह तमाम सवाल पुलिस प्रशासन को कटघरे में खड़ा करते हैं। वहीं दूसरी तरफ इस सनसनीखेज घटनाक्रम के बाद आदमखोर भालू के भय से आतंकित ग्रामीणों ने राहत की सांस ली है, परंतु इसी के साथ यह प्रश्न भी एक बार फिर उत्पन्न हो गया है कि शाकाहारी भालू आखिर हिंसक होकर मनुष्य के मांस का भक्षण क्यों कर रहा है?
लाश को डोंगरी में ही छोड़ कर भागे गांव
मरवाही वन परिक्षेत्र के अंतर्गत ग्राम भर्रीडांड के गगनई बाँध के पास बरनीझिरिया डोंगरी में आदमखोर भालू द्वारा एक व्यक्ति को मार कर खाने की घटना 31 दिसंबर की देर शाम की है, जबकि दूसरे व्यक्ति को इसी आदमखोर भालू द्वारा मार कर खाने की घटना एक जनवरी को ग्राम सिलपहरी के बांध के पास घटित हुई। ग्राम भर्रीडांड का रहने वाला 27 वर्षीय युवक भूपेंद्र सिंह (पिता जयराम सिंह कंवर) मंगलवार, 31 दिसंबर को सुबह 10 बजे गंगनई बांध के पास बरनीझिरिया ड़ोंगरी में अन्य ग्रामीणों के साथ सायकल से लकड़ी लेने गया था। अन्य ग्रामीण जंगल से वापस आ गए, परंतु भूपेंद्र सिंह नही लौटा। तब शाम को परिजन और अन्य ग्रामीण उसे ढूंढने डोंगरी में गए, जहाँ भूपेंद्र की सायकल एवं उसकी चप्पल दिखी। पास ही भूपेंद्र की क्षत-विक्षत लाश भी नजर आई। इस घटना की सूचना पुलिस एवं वन विभाग को देने के बाद 13 ग्रामीण डोंगरी में रात को अलाव जला कर लाश की पहरेदारी कर रहे थे। तभी रात 11 बजे एक ग्रामीण ने आदमखोर भालू को भूपेंद्र की लाश खाते देखा। ग्रामीणों ने जलती हुई लकडी और टंगिये से हमला कर भालू को भगाने का प्रयास किया तो भालू लाश खीच कर नोच- नोच कर खाने लगा। ग्रामीणों ने हिम्मत दिखाते हुए पुनः जब भालू पर हमला किया तो उलटे उन पर भालू हमला कर बैठा। भालू का खूंखार रूप देखकर ग्रामीण लाश छोड कर वापस गांव आ गए।
देखा भालू और इंसान के बीच संघर्ष
बुधवार, एक जनवरी को सुबह लगभग सात बजे करीब दो सौ ग्रामीण इकट्ठे होकर दोबारा डोंगरी पहुंचे तो भालू लाश का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा खा चुका था तथा उसके करीब ही बैठा था। ग्रामीणों द्वारा खदेडने पर भालू वहां से भाग निकला। वहां से भागने के बाद भालू उसी डोंगरी के दूसरे छोर में बसे ग्राम सिलपहरी की ओर आया और सिलपहरी बाध के पास जानवर चरा रहे 55 वर्षीय कलीराम यादव (पिता बच्चू यादव) को अपना शिकार बना कर लाश को खा गया। इसकी सूचना गांव में फैलते ही सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण घटना स्थल के पास पहुंचे। ग्रामीणों को देख कर भालू टस से मस नही हुआ और लाश को खाता रहा। अपने बड़े पिता की लाश को खाते देख 26 वर्षीय युवक अमरसाय (पिता बलराम यादव) तथा 40 वर्षीय बुधलाल यादव ने भालू को भगाने प्रयास किया तो भालू ने उन पर भी हमला कर घायल कर दिया। इस दौरान आदमखोर भालू और इंसान के संघर्ष को सैकडों ग्रामीण देखते रहे लेकिन कोई उन्हें बचाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
एसडीएम को लेना पड़ा गोली मारने का फैसला
घटना की जानकारी मिलने पर प्रशिक्षु आईएएस और पेण्ड्रारोड के प्रभारी एसडीएम रणवीर शर्मा, एडिशनल एसपी एआर बैरागी, एसडीओपी एसएस शर्मा, पेण्ड्रा थाना प्रभारी ललित साहू, एएसआई हेमंत सिंह ठाकुर के नेतृत्व में पेण्ड्रा थाने का पुलिस बल तथा मीडिया की टीम मौके पर पहुंच चुकी थी। जहां उनके एवं सैकडों ग्रामीणों के सामने आदमखोर भालू लाश को नोच-नोच कर खाता रहा। बहुत प्रयास के बावजूद भी भालू वहां से टस से मस नही हो रहा था। इन परिस्थितियों को गौर कर आगे और जन हानि को रोकने के लिये आखिरकार एसडीएम रणवीर शर्मा ने पुलिस को आदेश दिया कि वह आदमखोर भालू को गोली मार दे। एसडीएम के निर्देश पर रायफल से पेण्ड्रा थाना प्रभारी ललित साहू ने दो राउण्ड, आरक्षक महेंद्र परस्ते ने पांच राउण्ड तथा नरेंद्र पात्रे ने चार राउण्ड गोली चलाकर आदमखोर भालू को मार गिराया। इसके बाद ग्रामीणों ने राहत का सांस ली। इसके बाद घटना स्थल पहुचें मरवाही वनमण्डल के डीएफओ आरके चंदेले आदमखोर भालू को गोली मारने के सवाल पर अपनी प्रतिक्रिया देने से बचते रहे। उन्होने सिर्फ इतना ही कहा कि मृतकों के परिजनों को पांच-पांच हजार रूपये की तात्कालिक सहायता राशि दी जा रही है तथा दो-दो लाख रूपये की मुआवजा राशि का चेक मृतकों के परिजन को पीएम रिपोर्ट एवं पुलिस के प्रतिवेदन के बाद प्रदान किया जायेगा।
पहले भी भालू हो चुके हैं आदमखोर
इस घटना से पहले भी मरवाही के जंगल के भालू दो बार आदमखोर हो चुके हैं। डेढ साल पहले मरवाही वन परिक्षेत्र के ग्राम सचराटोला में मंगलवार, 7 जून 2011 को 30 वर्षीय युवक चैतू सिंह (पिता हीरू सिंह गोंड) अपने नये बैल को हल चलाना सिखाने के लिये गांव के समीप डोंगरी के पास स्थित अपने खेत ले गया था। उस दिन वह वापस नही आया। 8 जून की सुबह उसी गांव के दयाराम गोंड ने डोंगरी में देखा कि एक व्यक्ति की लाश को भालू नोच-नोचकर खा रहा है। इस सूचना पर सैकडों की संख्या में एकत्रित हुए ग्रामीणों ने लाठी एवं टंगिया से पीट-पीटकर आदमखोर भालू को मार डाला था। इसके पूर्व 14 और 15 जनवरी 1995 को चुवाबहरा (मरवाही) में भालू द्वारा तीन लोगों को मार कर उनके मांस का भक्षण करने की घटना ने पूरे शासन-प्रशासन को झकझोर कर रख दिया था। 14 जनवरी 1995 को ग्राम चुवाबहरा की एक महिला और एक पुरूष जंगल गये थे। जहां एक भालू ने उन्हें मार डाला और उनके शरीर के कुछ अंगो को खा लिया। 15 जनवरी 1995 को उक्त गांव के ही छह ग्रामीण फिर उसी जंगल में गए जिनके उपर उक्त नरभक्षी भालू ने फिर हमला किया। पांच व्यक्ति पेड़ पर चढ़कर किसी तरह से अपनी जान तो बचा लिये थे, परंतु उनमें से एक महिला को मार कर नरभक्षी भालू ने नोच-नोचकर उसके शरीर के आधे हिस्से को खा लिया था। दो दिनों से लगातार ग्रामीणों को मार कर भालू द्वारा खाये जाने की घटना से पूरा शासन-प्रशासन आश्चर्यचकित रह गया था। उस समय वन विभाग ने नरभक्षी भालू को मारने के लिये पुलिस की मदद ली थी और बिलासपुर से पहुंचे सशस्त्र बल के जवान ने उस नरभक्षी भालू को गोली से मारा था। शाकाहारी भालू के मरवाही में नरभक्षी होने की घटना पूरे देश में वन्य प्राणी जीवन विशेषज्ञों को सोचने पर विवश कर दिया था। जिसके कारण वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, देहरादून के सदस्यों ने दो वर्षो तक मरवाही के भालुओं पर रिसर्च कर उनकी आक्रमकता ख़त्म करने ”आपरेशन जामवंत” नामक प्रोजेक्ट बनाया था, परंतु यह प्रोजेक्ट बजट के अभाव में अब तक फाइलों से बाहर नही आ पाया है।
जंगलो में अतिक्रमण से भालुओं का रूख गांव की तरफ
मनुष्य द्वारा जंगलो में किये जा रहे अतिक्रमण के कारण भालू गांव की ओर आने लगे है। मनुष्य जामुन, आंवला, अमरूद, तेंदू, चार, महुआ इत्यादि वृक्षों को बेरहमी से काट रहा है। जिसके कारण भालूओं का प्रिय भोजन अब जंगलो में उन्हें ठीक तरह से नही मिल पा रहा है। वन विभाग को चाहिये कि वह विशेषज्ञों द्वारा बनाए गए जामवंत प्रोजेक्ट को लागू कर जंगलों से अतिक्रमण रोके। इससे भालू गांव की ओर रूख करना छोड़ देंगे।



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