मंगलवार, 7 जनवरी 2014

आदमखोर भालू की ह्त्या के मामले में हो रही सरकारी लीपापोती

* मरवाही क्षेत्र में भालू को गोली से मार डालने की जाँच शुरू 
* मामले को रफादफा कराने का प्रयास प्रारम्भ 

छत्तीसगढ़ के मरवाही वन मंडल के जंगल में आदमखोर भालू की गोली मार कर हत्या किये जाने पर वन विभाग और जिला प्रशासन में उपजा विवाद बढ़ता जा रहा है। प्रधान वन संरक्षण, वन्य प्राणी के निर्देश पर शुक्रवार से तीन सदस्यीय टीम ने जांच शुरू कर दी है। जांच की लीपापोती करने टीम पर अब राजधानी से उच्च स्तरीय प्रशासनिक दबाव पड़ना भी प्रारम्भ हो गया है।
वन विभाग के आला अफसरों के मुताबिक भालू की गोली मार कर ह्त्या करना सीधे तौर पर वन्य प्राणी अधिनियम का खुला उल्लंघन करना है। इस मामले की जाँच शैलेन्द्र सिंह, वन संरक्षक, वन्य प्राणी अध्यक्ष, सीएल अग्रवाल, उप संचालक, अचानकमार टाइगर रिजर्व, सदस्य और बीपी सिंह, उप संचालक बायोस्फियर अचानकमार, सदस्य ने जैसे ही शुक्रवार को मरवाही जाकर शुरू की तो राजधानी रायपुर से बड़े प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से दबाव डालना आरम्भ हो गया। दबी जुबान से जाँच टीम से आग्रह किया गया है कि वे इस मामले की सतही तौर पर जाँच कर रफादफा कर दें। साथ ही यह साबित कर दें कि ग्रामीणों की भावी सुरक्षा के मद्देनजर भालू को गोली मार कर मौत के घाट उतारना बेहद जरूरी था। ताकि भविष्य में और किसी ग्रामीण की जान न जाय। 
जाँच टीम के एक सदस्य शैलेन्द्र सिंह के मुताबिक़ जाँच रिपोर्ट हर हाल में दस दिनों के भीतर सौंप दी जायेगी। गौरतलब है कि वन मंत्रालय स्वयं मुख्यमंत्री डा रमन सिंह के अधीन है। इसलिए जाँच टीम पर दबाव बनाए जाने की अप्रत्यक्ष कोशिशें हो रही है। जिला प्रशासन की छीछालेदर न हो इसके लिए मंत्रालय के आला अफसर भी सक्रिय हो गए हैं।
मरवाही के वन मंडलाधिकारी राजेश चंदेले के अनुसार पोस्ट मार्टम से मृत भालू के सिर से दो गोली निकाली गई है। भालू का बिसरा जाँच के लिए रायपुर भेजा गया है। मृत भालू आदमखोर था या नहीं, फ़िलहाल इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। बिसरा रिपोर्ट आने के पश्चात ही इस बारे में ज्ञात हो सकेगा। वहीं दूसरी तरफ रामप्रकाश, प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी का दावा है कि हमने वन विभाग को भालू को बेहोश करने का निर्देश दिया था। बिलासपुर के कानन पेंडारी स्मॉल जू से ट्रेंक्यूलाइजर गन लाकर भालू को बेहोश करने का आदेश दिया गया था। हालांकि उन्होंने इस बात पर अपनी अनभिज्ञता जाहिर की भालू को किसके आदेश पर और किन परिस्थितयों की वजह से मार डाला गया, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। 
वन्य प्राणी विशेषज्ञों के मुताबिक भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची एक में भालू को शामिल किया गया है। इसमें बाघ सहित अन्य ऐसे जानवरों को भी शामिल किया गया है, जिनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। नेचर क्लब के संयोजक मंसूर खान ने मांग की है कि भालू की ह्त्या के दोषी अधिकारियों के खिलाफ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। अन्यथा वे कोर्ट की शरण में जायेंगे।
वैसे भी वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम की धारा 11 के तहत दुर्लभ प्रजाति के वन्य प्राणियों को मारना जघन्य अपराध है। प्रशासनिक अधिकारी वन्य प्राणियों पर गोली चलाने का आदेश कतई नहीं दे सकते। केवल अंतिम हालात में ही वाइल्ड लाइफ पीसीसीएफ ही इसके लिए अधिकृत होते हैं।  बाघ संरक्षण पर कार्य कर रहे भोपाल के एनजीओ प्रयत्न ने इस पूरे मामले की शिकायत केंद्रीय वन मंत्री वीरप्पा मोइली से कर उच्च स्तरीय जाँच की मांग की है। बिलासपुर जिला पंचायत की सदस्य बूंद कुंवर सिंह और मरवाही के कांग्रेस विधायक अमित जोगी के प्रतिनिधि ज्ञानेन्द्र उपाध्याय ने भी इस मामले में रोष जाहिर करते हुए दोषी अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने आदमखोर भालू पर गोली चलाने का आदेश देने वाले एसडीएम और गोली चलाने वाले पुलिस जवानों को पुरस्कार देने राज्य सरकार से सिफारिश की है।
                       

कोई टिप्पणी नहीं: