शनिवार, 18 जनवरी 2014

कानन पेंडारी के चीतलों की मौत पर सियासत का कफ़न



* कानन पेंडारी जू में 22 चीतलों की मौत का मामला गरमाया 
* कांग्रेसियों और अभाविप ने डीएफओ का घेराव कर मचाया हंगामा 
* कांग्रेसियों ने सीएम का किया पुतला दहन 
  
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से दस किलोमीटर दूर स्थित कानन पेंडारी स्मॉल जू में हुई 22 चीतलों की मौत के विरोध में वन्य प्राणी प्रेमियों के अलावा कांग्रेसी और अभाविप ने भी अब मोर्चा खोल दिया है। मामले की लीपापोती करने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई न होने से भड़के कांग्रेसी और अभाविप के लोगों ने शुक्रवार को दोपहर डीएफओ हेमंत कुमार पाण्डेय का घेराव उन्हीं के कार्यालय में जम कर नारेबाजी करते हुए उग्र प्रदर्शन किया। डीएफओ से तत्काल मामले की एफआईआर दर्ज कराने और उनके इस्तीफे की मांग भी की गई। फिर कांग्रेसियों ने मुख्यमंत्री का पुतला दहन किया। इस दौरान एसडीएम, सीएसपी सिविल लाइन, टीआई के अलावा भारी पुलिस बल तैनात था, लेकिन वे मूकदर्शक बन कर खड़े रहे। 
कानन पेंडारी में मृत चीतलों के मामले को लेकर शुक्रवार को दोपहर एक बजे से ही डीएफओ कार्यालय में काफी गहमागहमी बनी रही। कोई अप्रिय स्थिति न उत्पन्न हो, इसलिए सुरक्षा बतौर एसडीम कदीर अहमद खान, सीएसपी सिविल लाइन मधुलिका सिंह, सिविल लाइन थाना प्रभारी एलपी द्विवेदी सहित पुलिस बल पहले से ही मौजूद था। सबसे पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जिला संयोजक निलय तिवारी के नेतृत्व में सदस्यगण डीएफओ कार्यालय में धावा बोला। पुलिस बल ने जब डीएफओ हेमंत कुमार पाण्डेय के कक्ष में घुसने की उनकी कोशिश नाकाम कर दी तब वे अभाविप सदस्यों ने नारेबाजी शुरू कर दी। फिर माहौल बिगड़ता देख खुद डीएफओ उनसे चर्चा करने कक्ष से बाहर आये। अभाविप सदस्यों ने डीएफओ से पूछा कि चीतलों की मौत के जिम्मेदार लापरवाह जू प्रबंधन और दोषी कर्मियों के खिलाफ अब तक कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं की गई है। अगर एंथ्रेक्स बीमारी से चीतलों की मौत हुई है तो इसके संक्रमण की रोकथाम के क्या उपाय किये गए हैं, जिससे जू के अन्य पशु पक्षी और पर्यटक भी पीड़ित न हो सकें। काफी झड़प के बाद डीएफओ ने उन्हें अंतिम जाँच रिपोर्ट आने के बाद ही कार्रवाई करने का भरोसा दिलाकर चलता कर दिया। अभाविप के जिला संयोजक से जब पत्रकारों ने सवाल किया कि मुख्यमंत्री, जिन्होंने खुद वन मंत्रालय अपने पास रखा है, क्या आप लोग उन्हें भी इस मामले में घेरेंगे? तब उन्होंने सफाई दी कि इस मामले में मुख्यमंत्री को दोष देना ठीक नहीं है। पहली जिम्मेदारी जू प्रशासन और जिला प्रशासन की है। उनसे ही हमने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।    
अभाविप सदस्यों के जाते ही यहाँ प्रदेश कांग्रेस सचिव विवेक वाजपेयी और शहर कांग्रेस महामंत्री अनिल सिंह चौहान के नेतृत्व में कांग्रेसजन भी पहुंचे। काफी देर तक नारेबाजी किये जाने के बाद भी जब डीएफओ चर्चा करने के लिए अपने कक्ष से बाहर नहीं निकले तो उग्र कांग्रेसी पुलिस बल और कार्यालयीन वन कर्मियों द्वारा रोके जाने के बावजूद धक्कामुक्की करते हुए कक्ष के भीतर घुस गए। डीएफओ ने नाराज होकर जब प्रदर्शनकारी कांग्रेसियों को बाहर निकालने सीएसपी को आदेश दिया तो मामला ज्यादा बिगड़ गया। प्रदेश कांग्रेस सचिव विवेक वाजपेयी ने डीएफओ से जब पूछा कि 22 चीतलों की मौत कैसे हुई और इसका दोषी कौन है, तो डीएफओ ने पल्ला झाड़ते हुए जवाब दिया कि दुर्ग के वेटनरी डॉक्टरों ने ब्लड सैम्पल के लैब परीक्षण के बाद मौत की वजह एंथ्रेक्स बीमारी बताई है। इस मामले में मैं किसी कर्मचारी को कैसे दोषी ठहरा सकता हूँ। बरेली से बिसरा जांच की अंतिम रिपोर्ट आने के बाद ही सही कारणों का खुलासा होगा। यह सुन कर विवेक वाजपेयी भड़क गए और कहा कि आप एंथ्रेक्स की आड़ में मामले पर पर्दा डाल रहे हैं। एंथ्रेक्स के विषाणु फैलने की अफवाह फैला कर आम जनता में दहशत पैदा कर उन्हें बेवकूफ बना रहे हैं।एंथ्रेक्स बीमारी फ़ैली तो केज में बाकी 33 नर चीतल कैसे सुरक्षित बच गए? एंथ्रेक्स बीमारी अगर अभी फ़ैली है तो बीते साल नवम्बर में बाघिन के तीन शावक कैसे मर गए? एक छोटा हाथी कैसे मर गया? चीतलों की मौत के बाद अब तक आपने थाने में एफआईआर दर्ज क्यों नहीं कराई? दोषी जू कर्मियों के खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई है? आपने जू को ऐशगाह बना दिया है। घटना की रात को बीजेपी नेता को वहाँ पार्टी करने की इजाजत किसने दी? इन तमाम गंभीर सवालों का जवाब देने के बजाय डीएफओ ने मौन साध लिया। कांग्रेस नेत्री श्रीमती रश्मि सिंह ने भी सवाल दागा कि क्या एंथ्रेक्स बीमारी बताने के लिए अंजोरा दुर्ग के पशु चिकित्सक अधिकृत हैं? अगर वास्तव में एंथ्रेक्स फैला है तो आपने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन, दिल्ली को सूचित क्यों नहीं किया? जबकि अमेरिका में एंथ्रेक्स के जीवाणु फैलने की बात सामने आई थी तो पूरे देश में तत्काल आपदा प्रबंधन के इंतजाम कर लिए गए थे। आपके सहित जू कर्मी एंथ्रेक्स जीवाणु से कैसे बच गए? इसका जवाब भी देना डीएफओ ने मुनासिब नहीं समझा। तब शहर कांग्रेस महामंत्री ने रोषपूर्वक कहा कि आपको अब कांग्रेसजन कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते। आपको अब डीएफओ के पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। आप तत्काल इस्तीफा दीजिये। यह सुन कर मौन तोड़ते हुए डीएफओ ने साफ कहा कि मैं इस्तीफा हरगिज नहीं दूंगा। इस्तीफा मांगना शासन का काम है। डीएफओ के अड़ियल रवैये से क्षुब्ध होकर कांग्रेसी डीएफओ मुर्दाबाद, डीएफओ शर्म करो आदि नारे लगते हुए कक्ष से बाहर निकल गए। फिर उन्होंने कार्यालय परिसर के बाहर सड़क पर मुख्यमंत्री रमन सिंह का पुतला दहन किया। यहाँ भी पुलिस बल बगैर कोई विरोध किये मूकदर्शक बना रहा। 
बाद में पत्रकारों से चर्चा करते हुए कांग्रेस नेताओं ने कहा कि चीतलों की मौत ने प्रदेश के वन्य प्रेमियों और आम जनमानस को हिला कर रख दिया। मुख्यमंत्री के अधीन वन मंत्रालय होने के बाद भी वन्य प्राणियों की मौत एवं वन के दोहन और भ्रष्टाचार का खेल अत्यंत अमानवीय व संवेदनहीनता का परिचायक है। चीतलों की मौत के लिए मुख्यमंत्री और वन विभाग के भ्रष्ट अफसर इसके लिए जिम्मेदार है। उन पर आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए। डीएफओ और मुख्यमंत्री को तत्काल अपनी नैतिक जिम्मेदारी के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए। अन्यथा प्रदेश स्तर पर भी आंदोलन किया जाएगा। 

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

एंथ्रेक्स बीमारी के बहाने मृत 22 चीतलों के मामले को दबाने की साजिश

* जू प्रबंधन की लापरवाही पर पर्दा डाला जांच टीम ने 
* पीसीएफ समेत बड़े अफसरों ने पल्ला झाड़ा 
* पोस्ट मार्टम किये बिना दफनाया गया मृत चीतलों को 
 
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से दस किलोमीटर दूर स्थित कानन पेंडारी स्मॉल जू में मंगलवार की रात को हुई 22 चीतलों की मौत के मामले में जांच टीम और पीसीसीएफ समेत बड़े अफसरों ने एंथ्रेक्स बीमारी के बहाने पूरे मामले को रफादफा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। बुधवार की शाम को जू पहुंचते ही दुर्ग के विशेषज्ञ पशु चिकित्सकों ने रक्त नमूने लेकर जांच की खानापूर्ति करते हुए चंद घंटों के भीतर चीतलों की मौत की असली वजह एंथ्रेक्स बीमारी बता कर मामले को दबाने में अहम् भूमिका निभाई। जानवरों और इंसानों की सुरक्षा का हौव्वा खड़ा कर मृत चीतलों का पोस्ट मार्टम किये बिना उन्हें जू परिसर में ही गड्ढा खोद कर दफना दिया गया। एंथ्रेक्स के बैक्टीरिया फैलने की आशंका की आड़ में आठ दिन के लिए जू को बंद कर दिया गया है।   
एंथ्रेक्स बीमारी फैलने का झूठा दावा कर कानन पेण्डारी जू में चीतलों की मौत का मामला सुनियोजित तरीके दबाने की कोशिशे जारी हैं। वन विभाग के बड़े अफसर भी मातहतों को क्लीनचिट देने में लगे हुए है। रायपुर से प्रधान मुख्य वन संरक्षक रामप्रकाश बुधवार की शाम को जू पहुँचते ही डीएफओ से घटना की जानकारी ली और उनके साथ मिलकर मामले की लीपापोती में जुट गए। मीडिया को चीतलों की मौत की क्या वजह बताना है, इसकी रणनीति भी बना ली गई। गुरूवार को सुबह मृत चीतलों को बिना पोस्ट मार्टम किये ही चुपचाप दस फुट गड्ढा खोद कर दफना दिया गया। चीतलों के केज के सारे सबूत नष्ट करवा दिए गए। दिखावे के लिए चीतलों का ब्लड सैम्पल और बिसरा इन्डियन वेटनरी साइंस इंस्टीट्यूट बरेली को भेजा गया है।  वहाँ से भी एंथ्रेक्स बीमारी की पुष्टि कराने की रणनीति बनाई गई है। 
लापरवाही को बढ़ावा देने वाले डीएफओ को भी दिया जांच का जिम्मा 
चीतलों की मौत के मामले में रामप्रकाश, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्य प्राणी ने तीन सदस्यीय जांच टीम गठित की उसमें सीएल अग्रवाल, उप संचालक अचानकमार  टाइगर रिजर्व, डा पीके चन्दन, जू के पशु चिकित्सक के अलावा बिलासपुर के डीएफओ हेमंत कुमार पाण्डेय को भी शामिल करना चौंकाने वाली बात है। इनकी लचर कार्य प्रणाली और उदासीन रवैये के कारण ही जू प्रबंधन की लापरवाही में लागातार इजाफा हुआ है। बीते साल नवम्बर में इसी जू में लापरवाही के चलते बाघिन चेरी के तीन शावकों की मौत हो गई थी। पूरे जू के जानवर और पक्षियों की चिकित्सा का जिम्मा यहाँ पदस्थ कुत्ते के डॉक्टर पीके चन्दन को दिया गया है। रेस्क्यू सेंटर के प्रभारी और ट्रेंक्यूलाइजर विशेषज्ञ होने की वजह से वे ज्यादातर दूरस्थ इलाकों के दौरे पर रहते हैं। 65 एकड़ में फैले कानन पेंडारी में बाघ, शेर सहित बड़े और छोटे 354 जानवरों की जिंदगी भगवान भरोसे है।1975 में स्थापित इस वन्य प्राणी उद्यान को वर्ष 2005 में केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा स्मॉल जू का दर्जा दिया गया था। लेकिन तब से आज तक यहाँ सेन्ट्रल जू अथारिटी के मापदंडों का बिलकुल पालन नहीं हुआ है। इस हादसे के बाद स्मॉल जू की मान्यता खतरे में पड़ गई है। गौरतलब है कि जिस केज में 22 की चीतलों की मौत हुई है वहाँ कुल 55 चीतल रखे गए थे।  जबकि वहाँ अधिकतम तीस चीतल ही रखे जाने थे। जू के हाजिरी रजिस्टर के मुताबिक घटना की रात को 14 सुरक्षा कर्मी तैनात थे, जबकि असलियत यह है कि मात्र दो सुरक्षा कर्मी ही मौजूद थे।        
एंथ्रेक्स बीमारी के नाम पर नहीं किया गया मृत चीतलों का पोस्टमार्टम 
रामप्रकाश, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्य प्राणी, रायपुर ने भी इस मामले को रफादफा करने में गहरी रुचि ली है। गुरूवार को सुबह जू में गोपनीय तरीके से मृत चीतलों को दफनाये जाने के बाद उन्होंने पत्रकारों को आमंत्रित कर सफाई दी कि जिस बाड़े में चीतलों की मौत हुई थी, उसमें 53 चीतल रखे गए थे।  इसमें 18 नर और 35 मादा चीतल थे। मृत सभी चीतल मादा हैं। जिनकी उम्र तीन माह से लेकर पाँच वर्ष तक है। सुरक्षा की दृष्टि से मृत चीतलों को तत्काल हटाया गया और जीवित चीतलों को अन्य बाड़े में रखा गया। उनके मुताबिक, कामधेनु विश्विद्यालय अंजोरा दुर्ग के मेडीसीन विभागाध्यक्ष सुशोभन रॉय, विभागाध्यक्ष एपीडिमियोलॉजिस्ट डा संजय साक्या और विभागाध्यक्ष माइक्रो बायोलॉजी डा एसडी हिरपुरकर द्वारा मृत चीतलों के रक्त नमूने लेकर लेब परीक्षण किया गया। इनके साथ पशु चिकित्सा विभाग बिलासपुर के संयुक्त संचालक केके ध्रुव, डा आरएम त्रिपाठी, डा अनूप चटर्जी और डा रितेश स्वर्णकार भी परीक्षण में शामिल हुए। इन्होने रक्त परीक्षण के बाद एंथ्रेक्स बैक्टीरिया ( बेसीलस एन्थ्रेसीस) पाये जाने की बात कही। इसे ही चीतलों की मौत का कारण बताया गया है। रामप्रकाश का कहना है कि एंथ्रेक्स के जीवाणु 15 साल तक किसी भी जगह जीवित रहते हैं। शायद बहुत पहले जू के आसपास ये जीवाणु रहे होंगे, इसलिए चीतलों की मौत हुई है। एंथ्रेक्स के बैक्टीरिया हवा के सम्पर्क में आते ही तेजी से हवा में फैलते हैं ,इसलिए मृत चीतलों का शव विच्छेदन न करने और दफ़नाने की सलाह दी गई। इनका दावा है कि ये बैक्टीरिया मानव, मवेशियो, और अन्य सभी गर्म खून के प्राणियों के लिए घातक है। इसलिए जू के शेष चौपायों का टीकाकरण और उन्हें एंटीबायोटिक दवा दी जा रही है। जिन स्थानों पर चीतल मृत पाये गए थे वहाँ की मिट्टी एकत्र कर दस फीट गहरे गड्ढे में दबा दी गई है। इसके अलावा चीतलों के बाड़े में पांच फीसदी फारमेलडीहाइड दवा का छिड़काव किया गया है। सुरक्षा की दृष्टि से पर्यटकों के लिए जू को फ़िलहाल आठ दिन के लिए बंद कर दिया गया है। 
मादा चीतलों के ही मरने का क्या है राज? 
शहर के वन्य प्राणी विशेषज्ञों में चर्चा है कि जू में चीतलों की बढ़ती संख्या को कम करने के नाम पर संभवतः मादा चीतलों को विषाक्त दाना खिला कर मारा गया होगा, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि होना बाकी है। इसके पहले भी जू के चीतलों को अचानकमार के जंगल में कलकत्ता के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में स्थानांतरित करने की प्रक्रिया में चीतलों की मौत से प्रबंधन की बदनामी हुई थी। फरवरी वर्ष 2004 में शिफ्टिंग से पांच चीतलों की मौत हुई थी। उस वक्त यहाँ केज में दो सौ से ज्यादा चीतल थे। इनकी देखभाल करने में जू प्रबंधन नकारा साबित हुआ था। यहाँ वन माफिया को खुश करने चीतल मारकर देर रात पार्टी भी गोपनीय तरीके से दी जाती रही है। कुछ बड़े अफसर भी चीतल के मांस को पकवा कर खाने के शौक़ीन रहे हैं। गौरतलब है कि मंगलवार की रात को जब 22 चीतल तड़पते हुए मौत के मुंह में जा रहे थे, तब उसी दौरान जू के रेस्ट हाउस में एक रसूखदार नेता अपने मित्रों के साथ शराब के साथ मांसाहारी पार्टी कर का आनंद ले रहे थे। जू के कर्मचारी इनकी मेहमाननवाजी कर रहे थे। 
चीतल की संख्या घटाने अपनाए गए कई हथकंडे 
वैसे भी जू में चीतलों की तादात घटाने वन विभाग और जू प्रबंधन परदे के पीछे कई हथकंडे अपनाते रहा है। इस बार उन्होंने एंथ्रेक्स बीमारी की आड़ ली है। बिलासपुर के पशु चिकित्सा विभाग के संयुक्त संचालक केके ध्रुव का तर्क है कि मादा चीतल अधिक संवेदनशील होती है। उनमे प्रतिरोधक क्षमता भी नर चीतल के मुकाबले कम होती है। मादा चीतलों के झुण्ड के साथ शावक भी रहते हैं इसलिए ये सभी एंथ्रेक्स बीमारी के शिकार जल्द हो गए। एंथ्रेक्स के जीवाणु किसी पक्षी के द्वारा भी इनमे आये होंगे। एंथ्रेक्स से पीड़ित कोई पक्षी किसी मादा चीतल को चोंच मारी होगी। जिससे इसका संक्रमण हुआ होगा। वहीं दूसरी तरफ राज्य वन्य प्राणी संरक्षण सलाहकार समिति के सदस्य रहे प्राण चड्ढा ने दावा किया है कि बिलासपुर का इलाका पिछले दस सालों से एंथ्रेक्स फ्री जोन रहा है। एंथ्रेक्स बीमारी का हवाला देकर बड़े अफसर, जाँच टीम और विशेषज्ञ डाक्टर जू प्रबंधन की लापरवाही पर पर्दा डाल रहे है। मौत के असली कारण को छुपाया जा रहा है। चीतलों के बाड़े में घटना दिनांक को दाना डालने गए जू कर्मी के पीछे कोई कुत्ता भी घुस गया होगा जिसने बाद में कुछ मृत चीतलों का पेट नोंच खाया होगा। यह सब जू प्रबंधन की लापरवाही का ही नतीजा है। इस मामले की उच्च स्तरीय जाँच होनी चाहिए। मुख्यमंत्री को इस मामले में दखल देना चाहिए, क्योंकि वन मंत्रालय उन्हीं के अधीन है। खास बात यह है कि जिस जानलेवा एंथ्रेक्स बीमारी का हौव्वा खड़ा किया गया है, उसी एंथ्रेक्स से ग्रस्त मृत चीतलों का बल्ड सैम्पल और बिसरा बिना कोई ठोस सुरक्षा के इंतजाम किये बगैर अधिकारी उसे हवाई जहाज से बरेली क्यों कैसे ले गए? यह सवाल भी काफी गंभीर है। तमाम सवालों से पूरे मामले की लीपापोती जाहिर होती है।         

चीतलों की मौत के मामले को दबाने संबंधी मेरी रपट दबंग दुनिया में प्रकाशित


गुरुवार, 16 जनवरी 2014

22 चीतलों की मौत पर दैनिक दबंग दुनिया में छपी मेरी रपट


कानन पेंडारी जू प्रबंधन की लापरवाही से 22 चीतलों की मौत

* कानन पेण्डारी प्रबंधन की लापरवाही ने ली 22 चीतल की जान  
* दाने में जहर मिला कर मारने की आशंका 
* दुर्ग से आए तीन पशु चिकित्सकों के दल ने की जाँच 
* डीएफओ मामले की लीपापोती करने में जुटे

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित स्मॉल जू कानन पेण्डारी के बाड़े में बुधवार को सुबह करीब सात बजे 22 चीतल मृत पाये गए। इनमें आठ शावक भी शामिल हैं। सभी मृत चीतल मादा हैं। मंगलवार की रात को इन चीतलों को दाने में जहर देकर मारने की आशंका जताई गई है। जू प्रबंधन की लापरवाही से ही इन चीतलों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस हादसे के बाद वन विभाग फिर सवालों के कटघरे में आ गया है। डीएफओ इस मामले की लीपापोती करने में जुट गए हैं। 
स्मॉल जू कानन पेण्डारी के चीतलों के बाड़े (केज) में बुधवार को सुबह करीब सात बजे जब जू कर्मी बलदाऊ वस्त्रकार दाना डालने गया तो वहाँ 14 मादा चीतल और आठ मादा शावक (छौना) को मृत अवस्था में देख कर उसकी आँखें फटी रह गई। उसने चीतलों के मुंह और गुदा द्वार से खूंन निकला हुआ भी देखा। कुछ चीतलों के पेट फटे हुए भी दिखे। उसने तत्काल कानन पेण्डारी अधीक्षक और वन विभाग के आला अधिकारियों को इस मामले की जानकारी दी। सूचना पाकर सभी जिम्मेदार अधिकारी मौके पर पहुँच गये। वन अधिकारियों को मौके के मुआयने के दौरान चीतलों के बाड़े में डायजाफार्म दवा के तीन डिब्बे भी पड़े मिले। जिससे यह आशंका जताई जा रही है कि मंगलवार की रात को इन चीतलों को आहार में जो दाना दिया गया था उसमें जहर मिला हो सकता है। जबकि डीएफओ हेमंत पाण्डेय जहर खुरानी की बात से साफ इंकार कर रहे हैं। उनके मुताबिक़ पूरे मामले की जाँच और पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के बाद ही मौत के कारणों का खुलासा हो सकेगा।
बहरहाल, प्राथमिक जाँच के बाद बाड़े से सभी मृत चीतलों को वाहन में डाल कर जू परिसर में स्थित अस्पताल के निकट लाकर मैदान की झाड़ियों में छिपा कर रख दिया गया। कौव्वों और गिद्धों से बचाने और मीडिया से छुपाने की दृष्टि से इन पर प्लास्टिक का तिरपाल ढँक दिया गया। जब मीडिया कर्मी यहाँ पहुंचे तो डीएफओ ने मामले पर अपना पल्ला झाड़ते हुए कुछ भी अधिकारिक बयान देने से कतराने लगे। उन्होंने मृत चीतलों की तस्वीरें खीचने पर कुछ घंटे तक पाबंदी लगा दी थी। हालाँकि बाद में डीएफओ का रूख कुछ नरम पड़ा। वन संरक्षक सिंह भी मामले पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से बचते रहे। इस मामले में वरिष्ठ वन अधिकारियों के ढुलमुल रवैये को देख कर कलेक्टर ठाकुर राम सिंह ने सक्रियता दिखाते हुए दुर्ग के तीन वरिष्ठ पशु चिकित्सकों को जाँच के लिए बुलवाया। ये चिकित्सक शाम को कानन पेण्डारी पहुंचे और जाँच शुरू की। इस हादसे के बाद वन विभाग की कार्य प्रणाली पर सवालिया निशान लग गए है। बीते साल नवम्बर माह में लापरवाही के कारण बाघिन चेरी के तीन शावकों की मौत के बाद भी जू प्रबंधन नहीं चेता है। उसकी लापरवाही से फिर जू के अन्य जानवरों की जान पर भी खतरा मंडरा रहा है। सनद रात के वक्त जू में दिखावे के लिए आठ कर्मियों को तैनात किया गया है। जबकि गश्त पर दो तीन कर्मी रहने का दावा किया गया है। अब प्रश्न उठता है कि बाहर का कोई भी व्यक्ति चीतलों को जहर देकर कैसे मार सकता है। चीतलों को दाने में जहर मिला कर मारने का क्या उद्देश्य हो सकता है, यह सवाल अभी अनुत्तरित है। वहीं दूसरी तरफ यह भी चर्चा है कि इस जू में चीतलों की बढती संख्या के मद्देनजर 22 चीतलों को बेहोश कर देर रात को बंद वाहन में लाद कर अचानकमार के जंगल में शिफ्ट किये जाने की योजना थी। कुछ वर्ष पूर्व भी जब चीतलों की शिफ्टिंग की जा रही थी तब भी कुछ चीतलों की मौत हो गई थी।


           

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

आदमखोर भालू की ह्त्या के मामले में हो रही सरकारी लीपापोती

* मरवाही क्षेत्र में भालू को गोली से मार डालने की जाँच शुरू 
* मामले को रफादफा कराने का प्रयास प्रारम्भ 

छत्तीसगढ़ के मरवाही वन मंडल के जंगल में आदमखोर भालू की गोली मार कर हत्या किये जाने पर वन विभाग और जिला प्रशासन में उपजा विवाद बढ़ता जा रहा है। प्रधान वन संरक्षण, वन्य प्राणी के निर्देश पर शुक्रवार से तीन सदस्यीय टीम ने जांच शुरू कर दी है। जांच की लीपापोती करने टीम पर अब राजधानी से उच्च स्तरीय प्रशासनिक दबाव पड़ना भी प्रारम्भ हो गया है।
वन विभाग के आला अफसरों के मुताबिक भालू की गोली मार कर ह्त्या करना सीधे तौर पर वन्य प्राणी अधिनियम का खुला उल्लंघन करना है। इस मामले की जाँच शैलेन्द्र सिंह, वन संरक्षक, वन्य प्राणी अध्यक्ष, सीएल अग्रवाल, उप संचालक, अचानकमार टाइगर रिजर्व, सदस्य और बीपी सिंह, उप संचालक बायोस्फियर अचानकमार, सदस्य ने जैसे ही शुक्रवार को मरवाही जाकर शुरू की तो राजधानी रायपुर से बड़े प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से दबाव डालना आरम्भ हो गया। दबी जुबान से जाँच टीम से आग्रह किया गया है कि वे इस मामले की सतही तौर पर जाँच कर रफादफा कर दें। साथ ही यह साबित कर दें कि ग्रामीणों की भावी सुरक्षा के मद्देनजर भालू को गोली मार कर मौत के घाट उतारना बेहद जरूरी था। ताकि भविष्य में और किसी ग्रामीण की जान न जाय। 
जाँच टीम के एक सदस्य शैलेन्द्र सिंह के मुताबिक़ जाँच रिपोर्ट हर हाल में दस दिनों के भीतर सौंप दी जायेगी। गौरतलब है कि वन मंत्रालय स्वयं मुख्यमंत्री डा रमन सिंह के अधीन है। इसलिए जाँच टीम पर दबाव बनाए जाने की अप्रत्यक्ष कोशिशें हो रही है। जिला प्रशासन की छीछालेदर न हो इसके लिए मंत्रालय के आला अफसर भी सक्रिय हो गए हैं।
मरवाही के वन मंडलाधिकारी राजेश चंदेले के अनुसार पोस्ट मार्टम से मृत भालू के सिर से दो गोली निकाली गई है। भालू का बिसरा जाँच के लिए रायपुर भेजा गया है। मृत भालू आदमखोर था या नहीं, फ़िलहाल इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। बिसरा रिपोर्ट आने के पश्चात ही इस बारे में ज्ञात हो सकेगा। वहीं दूसरी तरफ रामप्रकाश, प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी का दावा है कि हमने वन विभाग को भालू को बेहोश करने का निर्देश दिया था। बिलासपुर के कानन पेंडारी स्मॉल जू से ट्रेंक्यूलाइजर गन लाकर भालू को बेहोश करने का आदेश दिया गया था। हालांकि उन्होंने इस बात पर अपनी अनभिज्ञता जाहिर की भालू को किसके आदेश पर और किन परिस्थितयों की वजह से मार डाला गया, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। 
वन्य प्राणी विशेषज्ञों के मुताबिक भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची एक में भालू को शामिल किया गया है। इसमें बाघ सहित अन्य ऐसे जानवरों को भी शामिल किया गया है, जिनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। नेचर क्लब के संयोजक मंसूर खान ने मांग की है कि भालू की ह्त्या के दोषी अधिकारियों के खिलाफ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। अन्यथा वे कोर्ट की शरण में जायेंगे।
वैसे भी वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम की धारा 11 के तहत दुर्लभ प्रजाति के वन्य प्राणियों को मारना जघन्य अपराध है। प्रशासनिक अधिकारी वन्य प्राणियों पर गोली चलाने का आदेश कतई नहीं दे सकते। केवल अंतिम हालात में ही वाइल्ड लाइफ पीसीसीएफ ही इसके लिए अधिकृत होते हैं।  बाघ संरक्षण पर कार्य कर रहे भोपाल के एनजीओ प्रयत्न ने इस पूरे मामले की शिकायत केंद्रीय वन मंत्री वीरप्पा मोइली से कर उच्च स्तरीय जाँच की मांग की है। बिलासपुर जिला पंचायत की सदस्य बूंद कुंवर सिंह और मरवाही के कांग्रेस विधायक अमित जोगी के प्रतिनिधि ज्ञानेन्द्र उपाध्याय ने भी इस मामले में रोष जाहिर करते हुए दोषी अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने आदमखोर भालू पर गोली चलाने का आदेश देने वाले एसडीएम और गोली चलाने वाले पुलिस जवानों को पुरस्कार देने राज्य सरकार से सिफारिश की है।
                       

सोमवार, 6 जनवरी 2014

आदमखोर भालू को जब पुलिस ने भून दिया गोलियों से .....

भालू लैंड के नाम से विख्यात छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के मरवाही वन क्षेत्र में अलग अलग स्थानों पर चौबीस घंटे के भीतर दो ग्रामीणों को मार कर उनका मांस भक्षण करने वाले आदमखोर भालू को पेंड्रा रोड के प्रभारी एसडीएम रणवीर शर्मा के आदेश से बुधवार, एक जनवरी को गोलियों से छलनी कर दिया गया। पुलिस ने ग्यारह राउंड फायरिंग कर भालू को मार गिराया। इस एनकाउंटर के बाद यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि क्या यह कार्रवाई पुलिस के अधिकार क्षेत्र में है? इस एनकाउंटर के मामले में वन विभाग के सहयोग को दरकिनार कर स्वतंत्र रूप से कार्रवाई क्यों की गई? ट्रेंक्यूलाइजर गन से इस आदमखोर भालू को बेहोश करने की पहल क्यों नहीं की गई? यह तमाम सवाल पुलिस प्रशासन को कटघरे में खड़ा करते हैं। वहीं दूसरी तरफ इस सनसनीखेज घटनाक्रम के बाद आदमखोर भालू के भय से आतंकित ग्रामीणों ने राहत की सांस ली है, परंतु इसी के साथ यह प्रश्न भी एक बार फिर उत्पन्न हो गया है कि शाकाहारी भालू आखिर हिंसक होकर मनुष्य के मांस का भक्षण क्यों कर रहा है?
लाश को डोंगरी में ही छोड़ कर भागे गांव
मरवाही वन परिक्षेत्र के अंतर्गत ग्राम भर्रीडांड के गगनई बाँध के पास बरनीझिरिया डोंगरी में आदमखोर भालू द्वारा एक व्यक्ति को मार कर खाने की घटना 31 दिसंबर की देर शाम की है, जबकि दूसरे व्यक्ति को इसी आदमखोर भालू द्वारा मार कर खाने की घटना एक जनवरी को ग्राम सिलपहरी के बांध के पास घटित हुई। ग्राम भर्रीडांड का रहने वाला 27 वर्षीय युवक भूपेंद्र सिंह (पिता जयराम सिंह कंवर) मंगलवार, 31 दिसंबर को सुबह 10 बजे गंगनई बांध के पास बरनीझिरिया ड़ोंगरी में अन्य ग्रामीणों के साथ सायकल से लकड़ी लेने गया था। अन्य ग्रामीण जंगल से वापस आ गए, परंतु भूपेंद्र सिंह नही लौटा। तब शाम को परिजन और अन्य ग्रामीण उसे ढूंढने डोंगरी में गए, जहाँ भूपेंद्र की सायकल एवं उसकी चप्पल दिखी। पास ही भूपेंद्र की क्षत-विक्षत लाश भी नजर आई। इस घटना की सूचना पुलिस एवं वन विभाग को देने के बाद 13 ग्रामीण डोंगरी में रात को अलाव जला कर लाश की पहरेदारी कर रहे थे। तभी रात 11 बजे एक ग्रामीण ने आदमखोर भालू को भूपेंद्र की लाश खाते देखा। ग्रामीणों ने जलती हुई लकडी और टंगिये से हमला कर भालू को भगाने का प्रयास किया तो भालू लाश खीच कर नोच- नोच कर खाने लगा। ग्रामीणों ने हिम्मत दिखाते हुए पुनः जब भालू पर हमला किया तो उलटे उन पर भालू हमला कर बैठा। भालू का खूंखार रूप देखकर ग्रामीण लाश छोड कर वापस गांव आ गए।
देखा भालू और इंसान के बीच संघर्ष
बुधवार, एक जनवरी को सुबह लगभग सात बजे करीब दो सौ ग्रामीण इकट्ठे होकर दोबारा डोंगरी पहुंचे तो भालू लाश का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा खा चुका था तथा उसके करीब ही बैठा था। ग्रामीणों द्वारा खदेडने पर भालू वहां से भाग निकला। वहां से भागने के बाद भालू उसी डोंगरी के दूसरे छोर में बसे ग्राम सिलपहरी की ओर आया और सिलपहरी बाध के पास जानवर चरा रहे 55 वर्षीय कलीराम यादव (पिता बच्चू यादव) को अपना शिकार बना कर लाश को खा गया। इसकी सूचना गांव में फैलते ही सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण घटना स्थल के पास पहुंचे। ग्रामीणों को देख कर भालू टस से मस नही हुआ और लाश को खाता रहा। अपने बड़े पिता की लाश को खाते देख 26 वर्षीय युवक अमरसाय (पिता बलराम यादव) तथा 40 वर्षीय बुधलाल यादव ने भालू को भगाने प्रयास किया तो भालू ने उन पर भी हमला कर घायल कर दिया। इस दौरान आदमखोर भालू और इंसान के संघर्ष को सैकडों ग्रामीण देखते रहे लेकिन कोई उन्हें बचाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
एसडीएम को लेना पड़ा गोली मारने का फैसला
घटना की जानकारी मिलने पर प्रशिक्षु आईएएस और पेण्ड्रारोड के प्रभारी एसडीएम रणवीर शर्मा, एडिशनल एसपी एआर बैरागी, एसडीओपी एसएस शर्मा, पेण्ड्रा थाना प्रभारी ललित साहू, एएसआई हेमंत सिंह ठाकुर के नेतृत्व में पेण्ड्रा थाने का पुलिस बल तथा मीडिया की टीम मौके पर पहुंच चुकी थी। जहां उनके एवं सैकडों ग्रामीणों के सामने आदमखोर भालू लाश को नोच-नोच कर खाता रहा। बहुत प्रयास के बावजूद भी भालू वहां से टस से मस नही हो रहा था। इन परिस्थितियों को गौर कर आगे और जन हानि को रोकने के लिये आखिरकार एसडीएम रणवीर शर्मा ने पुलिस को आदेश दिया कि वह आदमखोर भालू को गोली मार दे। एसडीएम के निर्देश पर रायफल से पेण्ड्रा थाना प्रभारी ललित साहू ने दो राउण्ड, आरक्षक महेंद्र परस्ते ने पांच राउण्ड तथा नरेंद्र पात्रे ने चार राउण्ड गोली चलाकर आदमखोर भालू को मार गिराया। इसके बाद ग्रामीणों ने राहत का सांस ली। इसके बाद घटना स्थल पहुचें मरवाही वनमण्डल के डीएफओ आरके चंदेले आदमखोर भालू को गोली मारने के सवाल पर अपनी प्रतिक्रिया देने से बचते रहे। उन्होने सिर्फ इतना ही कहा कि मृतकों के परिजनों को पांच-पांच हजार रूपये की तात्कालिक सहायता राशि दी जा रही है तथा दो-दो लाख रूपये की मुआवजा राशि का चेक मृतकों के परिजन को पीएम रिपोर्ट एवं पुलिस के प्रतिवेदन के बाद प्रदान किया जायेगा।
पहले भी भालू हो चुके हैं आदमखोर
इस घटना से पहले भी मरवाही के जंगल के भालू दो बार आदमखोर हो चुके हैं। डेढ साल पहले मरवाही वन परिक्षेत्र के ग्राम सचराटोला में मंगलवार, 7 जून 2011 को 30 वर्षीय युवक चैतू सिंह (पिता हीरू सिंह गोंड) अपने नये बैल को हल चलाना सिखाने के लिये गांव के समीप डोंगरी के पास स्थित अपने खेत ले गया था। उस दिन वह वापस नही आया। 8 जून की सुबह उसी गांव के दयाराम गोंड ने डोंगरी में देखा कि एक व्यक्ति की लाश को भालू नोच-नोचकर खा रहा है। इस सूचना पर सैकडों की संख्या में एकत्रित हुए ग्रामीणों ने लाठी एवं टंगिया से पीट-पीटकर आदमखोर भालू को मार डाला था। इसके पूर्व 14 और 15 जनवरी 1995 को चुवाबहरा (मरवाही) में भालू द्वारा तीन लोगों को मार कर उनके मांस का भक्षण करने की घटना ने पूरे शासन-प्रशासन को झकझोर कर रख दिया था। 14 जनवरी 1995 को ग्राम चुवाबहरा की एक महिला और एक पुरूष जंगल गये थे। जहां एक भालू ने उन्हें मार डाला और उनके शरीर के कुछ अंगो को खा लिया। 15 जनवरी 1995 को उक्त गांव के ही छह ग्रामीण फिर उसी जंगल में गए जिनके उपर उक्त नरभक्षी भालू ने फिर हमला किया। पांच व्यक्ति पेड़ पर चढ़कर किसी तरह से अपनी जान तो बचा लिये थे, परंतु उनमें से एक महिला को मार कर नरभक्षी भालू ने नोच-नोचकर उसके शरीर के आधे हिस्से को खा लिया था। दो दिनों से लगातार ग्रामीणों को मार कर भालू द्वारा खाये जाने की घटना से पूरा शासन-प्रशासन आश्चर्यचकित रह गया था। उस समय वन विभाग ने नरभक्षी भालू को मारने के लिये पुलिस की मदद ली थी और बिलासपुर से पहुंचे सशस्त्र बल के जवान ने उस नरभक्षी भालू को गोली से मारा था। शाकाहारी भालू के मरवाही में नरभक्षी होने की घटना पूरे देश में वन्य प्राणी जीवन विशेषज्ञों को सोचने पर विवश कर दिया था। जिसके कारण वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, देहरादून के सदस्यों ने दो वर्षो तक मरवाही के भालुओं पर रिसर्च कर उनकी आक्रमकता ख़त्म करने ”आपरेशन जामवंत” नामक प्रोजेक्ट बनाया था, परंतु यह प्रोजेक्ट बजट के अभाव में अब तक फाइलों से बाहर नही आ पाया है।
जंगलो में अतिक्रमण से भालुओं का रूख गांव की तरफ
मनुष्य द्वारा जंगलो में किये जा रहे अतिक्रमण के कारण भालू गांव की ओर आने लगे है। मनुष्य जामुन, आंवला, अमरूद, तेंदू, चार, महुआ इत्यादि वृक्षों को बेरहमी से काट रहा है। जिसके कारण भालूओं का प्रिय भोजन अब जंगलो में उन्हें ठीक तरह से नही मिल पा रहा है। वन विभाग को चाहिये कि वह विशेषज्ञों द्वारा बनाए गए जामवंत प्रोजेक्ट को लागू कर जंगलों से अतिक्रमण रोके। इससे भालू गांव की ओर रूख करना छोड़ देंगे।